स्पॉन्डिलाइटिस: बिगड़ती लाइफ़स्टाइल का दर्द

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1959

इन दिनों जीवन अनेक रोगों की गिरफ़्त में है. और इसके पीछे की वजह है-जीने के, काम करने के, मेहनत और आराम के तौर-तरीक़ों में आया बेतरह बदलाव. स्पॉन्डिलाइटिस भी आधुनिक जीवनशैली का सौंपा हुआ दर्द है. एक अध्ययन के मुताबिक़ आज हर 10 में 7 लोग इस दर्द के शिकार हैं और यह रोग बहुत क्रूरता से जीवन को मुश्क़िल बना रहा है. न दिखाई देने वाली इस समस्या के लक्षण और वजहें क्या हैं और कैसे पाई जा सकती है इस दर्द से निजात. इन तमाम सवालों के जवाब ढूंढ़ लाई है फ़ेमिना.
हमारे कृषि प्रधान देश में आई औद्योगीकरण की लहर ने जहां जीवन विकास के ढेरों आयाम सौंपे, वहीं जीवन की गतिशीलता और मेहनत करने की प्रवृत्ति को भी बुरी तरह जकड़ लिया. इन दिनों काम करने की स्थितियां ऐसी हैं कि लोग लंबे समय तक एक ही जगह पर बैठने को मजबूर हैं, जीवन में शारीरिक मेहनत कम है और आरामतलबी ज़्यादा. लिहाज़ा अच्छा आहार, अच्छा पोषण लेने के बावजूद जीवन रोगों का घर बना हुआ है. स्पॉन्डिलाइटिस इसी नई जीवनशैली से पैदा हुआ एक दर्द है, जो जीवन को दुश्वार-सा बना देता है.

क्या है स्पॉन्डिलाइटिस?
स्पॉन्डिलाइटिस रीढ़ की हड्डी से संबंधित रोग है, जिसमें रीढ़ की हड्डी में सूजन आ जाती है और गर्दन को मोड़ने-घुमाने-झुकाने में, दाएं-बाएं और ऊपर-नीचे करने में तेज़ दर्द होता है. सर्विकल स्पॉन्डिलाइटिस (जिसे हिन्दी में ग्रैव अपकशेरुकता कहा जाता है) दो यूनानी शब्दों ‘स्पॉन्डिल’ तथा ‘आइटिस’ से मिलकर बना है. स्पॉन्डिल का मतलब होता है-कशेरुक यानी ‘वर्टिब्रा’ (रीढ़ की हड्डी) और ‘आइटिस’ का मतलब होता है सूजन. इस तरह स्पॉन्डिलाइटिस का अर्थ हुआ कशेरुक या वर्टिब्रा में सूजन. स्पॉन्डिलाइटिस मुख्य रूप से तीन प्रकार का होता है-सर्विकल स्पॉन्डिलाइटिस, लंबार सर्विकल स्पॉन्डिलाइटिस और एंकायलूज़िंग सर्विकल स्पॉन्डिलाइटिस. सर्विकल स्पॉन्डिलाइटिस, सर्विकल स्पाइन को प्रभावित करता है जिसकी वजह से गर्दन और सिर में दर्द महसूस होता है. लंबार स्पॉन्डिलाइटिस में लंबार एरिया में यानी कमर के निचले हिस्से में कड़ापन और दर्द महसूस होता है और पीड़ित चलने, झुकने में असमर्थ महसूस करता है. वहीं एंकायलूज़िंग स्पॉन्डिलाइटिस, आर्थराइटिस का ही एक प्रकार है, जिसमें रीढ़ की हड्डी में लगातार दर्द रहता है और गर्दन से लेकर पीठ के निचले हिस्से तक अकड़न आ जाती है. यह स्थिति हड्डियों के ज़्यादा विकसित हो जाने के कारण पैदा होती है, जिससे हड्डियों में असामान्य सूजन होने लगता है और पीड़ित व्यक्ति के लिए रोज़मर्रा के काम करना भी मुश्क़िल हो जाता है. स्वस्थ रीढ़ की हड्डी किसी भी दिशा में मुड़ और झुक सकती है, लेकिन स्पॉन्डिलाइटिस से प्रभावित स्पाइन में अकड़न आ जाती है. जिससे स्पाइन को हिलाना लगभग नामुमक़िन हो जाता है और एड्वांस स्टेज पर पीड़ित बिस्तर पर आ जाता है.

क्या है वजहें?
स्पॉन्डिलाइटिस के अनेक कारण हो सकते हैं, लेकिन सबसे प्रमुख कारण है बेहद आराम-तलब हो चुकी हमारी ज़िंदगी और दिनचर्या में से शारीरिक श्रम का घटते जाना. मशीनों और उपकरणों के प्रयोग से आया गतिशीलता का अभाव और हमारा किसी भी क़िस्म की एक्सरसाइज़ से बचना. इनके अलावा गर्दन के आसपास के मेरुदंड की हड्डियों की असामान्य बढ़ोतरी भी स्पॉन्डिलाइटिस की वजह बनती है. इंटरवर्टेबल डिस्क (सर्विकल वर्टिब्रे) के बीच के कुशनों में कैल्शियम का डी-जनरेशन और अपने स्थान से खिसकना, इसके अन्य कारण हैं. एक ही मुद्रा में कंप्यूटर या लैपटॉप पर लगातार काम करना, फ़ोन पर गर्दन झुकाकर चैट करना. फ़ास्ट फ़ूड्स व जंक फ़ूड्स का सेवन, हड्डियों का कमज़ोर होना, मधुमेह व गठिया. लेकिन इस दर्द की मूल वजह है बेतरतीब लाइफ़स्टाइल. घंटों एक ही पोज़िशन में बैठे रहना. शराब और धूम्रपान के आदी लोगों में सर्विकल स्पॉन्डिलाइटिस की आशंका बढ़ जाती है.

कैसे करें पहचान?
एक्स्पर्ट्स का कहना है कि हमारे उठने-बैठने के ग़लत तरीक़े, बहुत ज़्यादा तनाव और घंटों काम करते रहने से हड्डियों व जोड़ों के रोग ज़्यादा प्रभावी हो चले हैं. स्पॉन्डिलाइटिस भी इसी श्रेणी का रोग है. एक अध्ययन के अनुसार स्पॉन्डिलाइटिस से आमतौर पर 30-50 साल के आयु वर्ग के लोग अधिक पीड़ित होते हैं. सामान्यतः इसके कोई लक्षण दिखाई नहीं देते और इसकी गिरफ़्त तब महसूस होती है, जब मांसपेशियों में अकड़न और खिंचाव की शिकायत बढ़ती है.

इस समस्या को इन लक्षणों के आधार पर पहचाना जा सकता है
* गर्दन में दर्द का उठना और दर्द का बाजू और कंधों तक महसूस होना. कई बार यह दर्द हाथ की उंगलियों से सिर तक हो सकता है.
* गर्दन में अकड़न आ जाना, जिससे सिर हिलाने तक में कठिनाई और दर्द महसूस होना.
* अंगों में झुनझुनी या सुन्नपन, असंवेदनशीलता या जलन जैसा महसूस होना.
* शरीर के निचले अंगों में कमज़ोरी, मूत्राशय और मलद्वार पर नियंत्रण न रहना.
* सिर के पीछे के भाग में दर्द विशेषकर कंधों, बाजुओं और हाथ में.
* मिचली, उल्टी या चक्कर आना. लेटकर तुरंत उठते वक़्त चक्कर आना या नशा-सा महसूस होना.
* मांसपेशियों में कमज़ोरी या कंधे, बांह या हाथ की मांसपेशियों की क्षति.
* पीड़ित को कई बार उल्टी भी आ सकती है.

कैसे मिले निजात?
सच कहा जाए तो स्पॉन्डिलाइटिस का कोई स्थायी इलाज अभी उपलब्ध नहीं है, लेकिन परंपरागत उपचारों की एक पूरी कड़ी हमारे पास है, जो इस समस्या की मुश्क़िलें कम कर सकती है. यूं तो स्पॉन्डिलाइटिस की वजह से नसों पर पड़ने वाले दबाव, खिंचाव, अकड़न और दर्द को कम करने, रीढ़ की हड्डी में होने वाले नुक़सान और डी-जनरेशन को रोकने के लिए कई तरह के उपचार उपलब्ध हैं, लेकिन इस रोग का सबसे मुफ़ीद इलाज है जीवन की गतिशीलता को बनाए रखना और नियमित व्यायाम करना. सर्विकल कॉलर से गर्दन के हिलने-डुलने को नियंत्रित कर दर्द को कम किया जा सकता है. अगर आपको कंप्यूटर पर अधिक देर तक काम करना पड़ता है, तो मॉनीटर सीधा रखें.
लगातार बैठे रहने के बजाय थोड़े-थोड़े अंतराल पर उठते रहें. उठकर बॉडी मूवमेंट करें. हल्की-फुल्की एक्सरसाइज़ करें. कुर्सी पर बैठते समय पीठ को सटाकर रखें. सिकाई करना भी एक बेहतर ऑप्शन है, लेकिन यह भी बिना चिकित्सकीय सलाह के नहीं किया जाना चाहिए.

स्पॉन्डिलाइटिस से राहत दिलानेवाले घरेलू नस्ख़े
स्पॉन्डिलाइटिस की वजह से रीढ़ की हड्डी में अकड़न पैदा हो जाती है, इसीलिए इलाज में देरी या लापरवाही नुक़सानदेह साबित हो सकती है. नसों में दर्द या सूजन बढ़ जाएं तो स्पाइन एक्स्पर्ट्स को दिखाना लाज़मी है. वैसे तो इस समस्या में सर्जरी की बहुत कम आवश्यकता पड़ती है, लेकिन यदि मांसपेशियों में बहुत ज़्यादा खिंचाव हो रहा हो, दर्द असह्य हो उठा हो और अन्य विकल्प विफल हो चुके हों, तब सर्जिकल प्रक्रिया यानी डिससेक्टॅमी या लैमिनेक्टॅमी सर्जरी का सहारा लिया जाता है. आयुर्वेद के मुताबिक़ यदि पत्थरी की समस्या नहीं है तो सर्विकल के लिए चूना एक सस्ती और बढ़िया औषधि है. गेहूं के दाने के बराबर चूना पानी, जूस या दही में मिलाकर खाएं. लहसुन की चार-पांच कलियां 1 गिलास दूध में उबाल कर रोज़ रात को सोने से पहले लेने से स्पॉन्डिलाइटिस में आराम मिलता है. नियमित सूर्य नमस्कार करने से भी इस पीड़ा से मुक्ति पाई जा सकती है. विटामिन बी और कैल्शियम से भरपूर आहार लें. हाई स्टार्च फ़ूड से, शराब, एक्सेस सोडियम और शुगर से बचें. बादाम, पिस्ता और अखरोट का सेवन करें. विटामिन डी युक्त आहार लें. ताज़ा फलों और सब्ज़ियों को भोजन में शामिल करें. धूप लें. मसाज द्वारा गर्दन की मांसपेशियों व अन्य ऊतकों को लचीला बनाया जा सकता है.