बिंदी (Bindi)

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इस वर्ष फिर दिवस आया
हमारी प्रिय स्वर वाहिनी
हिंदी का ||
मन कुछ बेचैन सा लगा
सोचा सब कुछ तो है
फिर क्यों लगे ठगा ठगा ||
एक दबी सी आवाज़
उखड़ती साँसों भरी
किसी कोने से आई
जानती हूँ मैं तेरी व्यथा
तूँ क्यों है ठगा ठगा ||
अपने दिल पर हाथ रख
मेरे प्रश्नों के उत्तर दे
पढ़ अपने मन की कथा ||
आवाज़ो के इस काल में
कौन सी भाषा है
तेरे विश्वास की?
कौन सी भाषा है
एहसास की?
कौन सी भाषा है
मर्म की?
कौन सी भाषा है
धर्म की
कौन सी भाषा है
कर्म की?
कौन सी भाषा है
चेतना की?
कौन सी भाषा है
प्यार की?
कौन सी भाषा है
अपनेपन की?
कौन सी भाषा है
जन जन की?
कौन सी भाषा है
तेरे मन की?
यह सब कह
स्वर मौन हो गया
मेरा उत्तर था सधा ||
मेरा कर्म, धर्म,प्रेम,
विश्वास हिंदी |
मेरा एहसास, चेतना,
अपनापन हिंदी |
मेरे जीवन का राग
हिंदी |
स्वर फिर चीख उठा
कहने और होने का अंतर
है तेरे मन की व्यथा
इसी कारण तू है ठगा ठगा ||
स्वर पुनः मौन हो गया
बोल मन की व्यथा ||
मैं बोझिल अंतर्मन से
भारत के माथे की बिंदी
हमारी प्रिय हिंदी को
उस माथे से ओझल
होते देखता रह गया ||

डॉ • अनुराधा शर्मा
(हिंदी अध्यापिका)
ज़िला पठानकोट
पंजाब

Kaushal.anu9@gmail.com